rpmwu339 dt. 28.04.2020
दिनांक 28 अप्रैल 2020 को जयपुर से प्रकाशित होने वाली राजस्थान पत्रिका के मुख्य पृष्ठ पर इस अखबार के संपादक श्रीमान गुलाब कोठारी ने पुनर्विचार आवश्यक नाम से एक संपादकीय लिखी। इस संपादकीय का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने एवं समझने के तत्पश्चात है लगा कि श्री गुलाब कोठारी के स्वयं के विचार उनकी संपादकीय में कई जगहों पर एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। मुझे तो लगता है कि उन्हें उनकी संपादकीय को पुनः विचारपूर्वक पढ़ना चाहिए और इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए कि वास्तव में वे क्या संदेश देना चाहते हैं? श्री गुलाब कोठारी ने लिखा है कि आरक्षण आत्मा का विषय है, फिर लिखा कि आरक्षण हीन भावना लाता है और आरक्षण ने देश की अखंडता की हत्या की है। उन्होंने आरक्षण को घुण की संज्ञा तक दे डाली और लिखा है कि पिछले 7 दशकों में आरक्षण ने देश की संस्कृति, समृद्धि व अभ्युदय सब को खा गया।
यह भी लिखा है कि नीतियां बुद्धिजीवी बनाते हैं जिनका माटी से कोई जुड़ाव नहीं होता, उनमें संवेदना नहीं होती। उनको निर्लज्ज तथा प्रज्ञा हीन तक कह डाला। साथ में लिखा है कि सरकारें आरक्षण पर मौन रहती हैं और उन्हें नकारा तथा नपुंसक तक की संज्ञा दी है।
अंत में लिख दिया कि जाति आधार सही है या नहीं इस पर पुुुनर्विचार होना चाहिए। जब आरक्षण के इतने सारे नुकसान गिना दिए हैं तो पुनर्विचार की क्या आवश्यकता है उसे जड़ से समाप्त करने के लिए ही सूझाव देना चाहिए था।
परंतु इसी लेख में श्री गुलाब कोठारी के दूषित मन की भावना प्रकट हो ही गई हैं। उनका मानना है कि आरक्षण ने प्रकृतिदत्त वर्ण व्यवस्था से समाज को मुक्त कर दिया है जबकि वर्ण व्यवस्था कायम रहनी चाहिए। उन्होंने लिखा है कि मनुष्य में ही नहीं, वर्ण व्यवस्था तो पशु पक्षी व देवताओं में भी होती है। उनकी सोच है कि जो लोग खेती, पशुपालन या और छोटे-मोटे पुश्तैनी कार्य से जुड़े रहे हैं उन्हें वही कार्य करते रहना चाहिए, उन्हें शिक्षित होकर नौकरी करने से क्या लाभ है? उनके शिक्षित होने से गुणवत्ता खराब हो रही है। उन्होंने तो यह भी कहा कि व्यक्ति जिस वर्ण में जन्मा है वे उसके कर्म का फल है। यही नहीं पशु पक्षी कीट की योनियों में जन्म लेने तक को कर्म का फल बता दिया है। अपरोक्ष रूप से इंगित किया है कि जो भी आरक्षित वर्ग के लोग हैं वे उन समाजों में उनके पूर्व जन्म में कर्मों के कारण हैं।
इसके अलावा उन्होंने युवा वर्ग को भड़काने का कार्य भी किया है और 1990 में आरक्षण विरोधी आंदोलन की बढ़ाई भी की है।
यदि आज के जमाने में कोई व्यक्ति इस प्रकार की दकियानूसी बातें करें और आरक्षण के नुकसान के सिवाय उसके लाभ यदि समझ में ही नहीं आ रहे है तो ऐसे लोगों को संपादकीय लिखने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस प्रकार के लोगों की विचारधारा एक तरफ तो वर्ण व्यवस्था की वकालात करती है और दूसरी तरफ जाति के आधार पर आरक्षण का विरोध करती हैं। इस बात को भलीभांत समझते हुए कि वर्ण व्यवस्था जिसे कमजोर वर्गों के शोषण के लिए जिम्मेदार मानते हुए भारतीय संविधान के आर्टिकल 13 के तहत जड़ से समाप्त करने की बात कहीं गई, उसी की खुले में वकालात करना देशद्रोह के समान है।
वर्ण व्यवस्था की वकालत करने वाले श्री गुलाब कोठारी को समझना चाहिए की यदि आरक्षण नहीं होता तो देश में निम्नलिखित तीन स्थितियां हो सकती थी -
प्रथम : स्थिति होती जिसमें जो लोग आरक्षित वर्ग में है वे अपना अलग देश बना लेते।
दूसरी : स्थिति होती कि यदि आरक्षित वर्ग के लोग अलग देश बनाने में सफल नहीं होते तो देश में हर समय असमानता व विभिन्न प्रकार के शोषणों के कारण गृह युद्ध चलता रहता। और तीसरी स्थिति होती कि यदि आरक्षित वर्ग के लोग उक्त दोनों कार्य करने में असफल रहतेे तो वे उनके पोटेंशियल/क्षमता की तुलना में बहुत ही छोटा कार्य करते रहते जिसकी वजह से देश को स्किल केे आभाव में बहुत भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता।
वास्तव में आरक्षण सभी के विकास व उत्थान के लिए एक आवश्यक उपाय है और जिन जातियों व समुदायों को आरक्षण मिला है उनकी आजादी के पहले और आजादी के बाद वर्तमान स्थिति से पता चलाया जा सकता है कि आरक्षण एक कितना कारगर उपाय सिद्ध हुआ है।
समझदार लोगों को इन मुद्दों को उठाना चाहिए कि 1) राज्यसभा, 2) उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्तियों 3) मंत्रियों के सलेेक्शन 4) सरकार के प्रत्येक विभाग की "की" पोस्टस् की नियुुुक्तियों 5) प्राइवेट क्षेत्र के हर स्तर के रोजगारों में आरक्षण का आवश्ययक रूप से प्रावधान किया जाना चाहिए।
रघुवीर प्रसाद मीना
इस लेख का ST SC व OBC वर्ग को कडा विरोध करना चाहिए । इसके लिए Social media पर हमारे कई सगठनों व लोगों ने trend चला रखें हैं उनका पुरजोर सर्मथन करना चाहिए । इस के अलावा अन्य विकल्पौ पर भी विचार किया जाना चाहिए।
ReplyDeleteगुलाब कोठारी पूर्व में भी कई बार आरक्षण के विरोध में (विशेषकर जब कोई मुद्दा मीना समाज से जुड़ा हो) संपादकीय लिख चुका है। राजस्थान पत्रिका ही नही, जब से केंद्र में तथाकथित हिंदूवादी सरकार आयी है तब से क्या इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट मीडिया यहाँ तक कि सोशल साइट्स पर भी आरक्षण विरोध के स्वर तीव्र हो रहे है। मजेदार बात ये है कि आरक्षण का विरोध करने वालो को आरक्षण देने का मापदंड, प्रक्रिया तथा इसकी मूलभूत संबैधानिक अधिकार के बारे में पता ही नही। हम आदिवासी लोगों को इस विरोध से गुस्सा तो बहुत आता है। लेकिन करना है ये पता नही....... अब डॉक्टर,इंजनियर,या IAS बनने से ज्यादा जरूरी है जज बनाना।
ReplyDeleteThis short of individual' adventurism reflects illicit intent towards the targeted strata of the society. The editor has to exercise restrain from such publication..
ReplyDeleteThis short of individual' adventurism reflects illicit intent towards the targeted strata of the society. The editor has to exercise restrain from such publication..
ReplyDeleteयह अधोगामी सोच प्रदर्शित करता है. जब मीडिया प्रमुखों का यह विचार है तो अन्य से क्या अपेक्षा की जा सकती है. इतिहास की त्रुटियों को सही करने के बजाए कलंकित इतिहास को पुनर्जीवित करने का क्या औचित्य है?
ReplyDeleteGood afternoon
ReplyDeleteश्रीमान जी CME सर ने पत्रिका के संपादक को सही दिशा दिखाई है l
और मेरे विचार से -,
गुलाब कोठारी ने 28 अप्रैल 2020 को राजस्थान पत्रिका में जो लेख लिखा है वो विभिन्न अनावश्यक, अमानवीय कारणों से, ईर्ष्या से, किसी व्यक्ति या समुदाय की उन्नति से कुंठित मन से लिखा गया लेख है l लंबे समय से इनके संस्कारों में, मन में और अपने साथियों के साथ बेबजह, सत्यता से परे, मानवीयता और जियो और जीने दो का ज्ञान किए बिना लिखा गया लेख है, इससे इनकी वैचारिकता, नैतिकता, मानवता, सर्व समाज, सर्व विकास जैसे मूल सिद्धांतों की जानकारी ना होना लगता है या जानबूझकर इनके द्वारा समाज को अपमान करना व नुकसान पहुंचाना प्रतीत होता है या ये अपना या विशेष समुदाय की चाटुकारिता में लिखता दिखाई दे रहा है l इस तरह की हरकत वाले लेख से इनकी नादानी और अपनी रोज़ी-रोटी व अपने देवता तुल्य ग्राहकों का अपमान करते दिखाई दे रहे हैं l
इसलिए इस अनावश्यक, अपमानित लेख पर इनको खुद को पुनविर्चार तुरंत अवश्य कर लेना चाहिए और संबंधित समाज से माफी माँगनी चाहिए l इसी में पत्रिका परिवार की भलाई है l
अन्यथा समाज इन्हें तुरंत प्रभाव से इनकी पत्रिका का हमेंशा के लिए बहिष्कार करने का निश्चय करे इसी में समाज की भलाई और उचित कार्यवाही मानी जायेगी l
By Lakhan Lal Meena
DeleteGood afternoon
ReplyDeleteश्रीमान जी CME सर ने पत्रिका के संपादक को सही दिशा दिखाई है l
और मेरे विचार से -,
गुलाब कोठारी ने 28 अप्रैल 2020 को राजस्थान पत्रिका में जो लेख लिखा है वो विभिन्न अनावश्यक, अमानवीय कारणों से, ईर्ष्या से, किसी व्यक्ति या समुदाय की उन्नति से कुंठित मन से लिखा गया लेख है l लंबे समय से इनके संस्कारों में, मन में और अपने साथियों के साथ बेबजह, सत्यता से परे, मानवीयता और जियो और जीने दो का ज्ञान किए बिना लिखा गया लेख है, इससे इनकी वैचारिकता, नैतिकता, मानवता, सर्व समाज, सर्व विकास जैसे मूल सिद्धांतों की जानकारी ना होना लगता है या जानबूझकर इनके द्वारा समाज को अपमान करना व नुकसान पहुंचाना प्रतीत होता है या ये अपना या विशेष समुदाय की चाटुकारिता में लिखता दिखाई दे रहा है l इस तरह की हरकत वाले लेख से इनकी नादानी और अपनी रोज़ी-रोटी व अपने देवता तुल्य ग्राहकों का अपमान करते दिखाई दे रहे हैं l
इसलिए इस अनावश्यक, अपमानित लेख पर इनको खुद को पुनविर्चार तुरंत अवश्य कर लेना चाहिए और संबंधित समाज से माफी माँगनी चाहिए l इसी में पत्रिका परिवार की भलाई है l
अन्यथा समाज इन्हें तुरंत प्रभाव से इनकी पत्रिका का हमेंशा के लिए बहिष्कार करने का निश्चय करे इसी में समाज की भलाई और उचित कार्यवाही मानी जायेगी l
लखन लाल मीना