rpmwu242
20190702
आदिवासियों_की_व्यथा
देश में आदिवासियों की स्थिति यदि आज भी देखी जाए तो सबसे दयनीय है। उन्हें जंगल व पहाड़ से जंगली जानवरों की भांति खदेड़ दिया जाता है। हर भारतीय नागरिक की जिम्मेदारी है कि उनकी ऐसे होने वाली दशा को रोकने के लिए स्वयं एवं सामूहिक प्रयत्न में अवश्य ही भागीदारी निभाएं।
जब देश आजाद हुआ था तब राजा महाराजाओं को उनके महल, भूमि व अकूत संपत्ति उनके जीवन की सुगमता के लिए उनके पास छोड़ दी जबकि उनमें से कईयों ने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं दिया। दूसरी और आदिवासियों ने कई बार अनेकों स्थानों पर आजादी की लड़ाई में अपनी जान न्यौछावर की, फिर भी उनके जंगल व पहाड़ पर रहने को कानून संवत नहीं माना गया। ये लोग जहां रहते हैं वहां बहुत लंबे समय से रहते आ रहे हैं।
वर्ष 2006 में वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिवासियों को उनके रहने के स्थान व उनके जीविकोपार्जन हेतु जमीन के अधिकार उन्हें देने थे परंतु विभिन्न बहानों से आज भी करोड़ों आदिवासियों को उनके रहने व खेती करने के अधिकार नहीं दिये जा रहे है। साथ में बेदखली की वजह से उन्हें उनके छोटे बच्चों को गिर्वी रखना पड़ रहा है।
राज्यसभा सांसद डाॅ किरोड़ी लाल मीना जी ने दौ बार इस मुद्दे को संसद में उठाकर बहुत ही सराहनीय व आवश्यक काम किया है।
हम सभी की भी नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आदिवासियों को उनका हक दिलवाया जाए। जंगल में जहां वे रह रहे हैं और जिस भूमि पर खेती कर रहे हैं उनके अधिकार उन्हें दिलाए जाएं ताकि वे एक सम्मानजनक जीवन यापन करके उनके बच्चों को पढ़ा सके और भारत देश की मैनस्ट्रीम से कालांतर में जुड़ सकें।
रघुवीर प्रसाद मीना
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