Thursday 15 December 2016

दूसरों का अच्छा नहीं सोचने वाले स्वयं का भी भला नहीं कर सकते।

rpmwu103
15.12.2016
दूसरों का अच्छा नहीं सोचने वाले स्वयं का भी भला नहीं कर सकते।

प्रत्येक मनुष्य के मन में हमेशा दो तरह के भाव चलते रहते हैं। उदाहरणार्थ यदि कोई व्यक्ति सुबह जल्दी जागने की अपेक्षा से शाम को जल्दी सो जाता है तो जब सुबह अलार्म बजता है तो एक भाव कहेगा कि सोते वक्त तय किया था कि जल्दी उठा जाये तभी दूसरा भाव कहेगा कि थोड़ा और सो लो।  ऐसी स्थिति में व्यक्ति उसके ज्यादा भारी भाव  के अनुसार निर्णय करता है। यदि अच्छा भाव अर्थात् जल्दी जागने की कहने वाला ज्यादा सामर्थ्य हुआ तो व्यक्ति जग जायेगा और यदि दूसरा भाव ज्यादा भारी हुआ तो वह सोता रहेगा। 

इसी प्रकार विभिन्न परिस्थितियों जैसे गलत की शिकायत करू या नहीं, घर के बाहर या रास्ते में कूड़ा फेंकू या नहीं, जाति धर्म की अनदेखी करके सही का साथ दूँ या नहीं, संस्था के अनुशासन से यदि स्वयं को नुकसान  होता है तो उसका समर्थन करूँ या नहीं इत्यादि में प्रत्येक मनुष्य के मन में दोनों भाव काम करते रहते हैं और जो भी भाव भारी हो जाता है वह उसी के अनुसार निर्णय ले लेता है।

यदि व्यक्ति उसके आचरण व दैनिक क्रियाकलापों में दूसरों के साथ न्याय व करूणापूर्ण सोच रखता है तो उसका अच्छा भाव मजबूत होता जायेगा और अच्छे भाव के प्रबल होने से दुविधा के समय स्वयं सही निर्णय लेगा। और यदि वह दुसरों के साथ गलत कराता है तो उसका स्वमं का ख़राब वाला अन्तर्भाव प्रबल बनेगा जो कि उसे स्वमं हेतु ख़राब निर्णय लेने के लिए बाध्य करेगा।  

अतः यदि व्यक्ति स्वमं का भला चाहता है तो आवश्यक है कि वह दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करे तथा न्याय व करूणायुक्त सोच रखे ताकि उसका अच्छा अन्तर्भाव मजबूत बने और वह दूसरों के साथ-साथ अपना स्वमं का भी भला करे। 

रघुवीर प्रसाद मीना



No comments:

Post a Comment

Thank you for reading and commenting.