Saturday 10 September 2016

पोस्ट का उद्देश्य : राजनेताओं को बुरा लगे और वे नींद से जागे।


rpmwu85
09.09.2016


राजस्थान राज्य में सरकारी कर्मचारी व अधिकारियों के ज्ञान में कमी के कारण मीना (समुदाय) व मीणा (सरनेम) की सही जानकारी नहीं है जिसकी वजह से मीना अनुसूचित जनजाति समुदाय के व्यक्तियों को राज्य के कई स्थानों पर जनजाति प्रमाणपत्र बनवाने एवम यदि सरकारी प्राधिकारियों की गलती से त्रुटिपूर्ण बना दिए गए है तो उनमें सुधार करवाने में आये दिन भारी दिक्कतों का सामना करना पड रहा है। कई बच्चो को नौकरी के समय जाती प्रमाणपत्रो के वेरिफिकेशन में परेशानी उठानी पड़ रही है। राज्य व केंद्र के अलग प्रारूप है अत: उन्हें अलग अलग बनवाना पड़ रहा है। क्यों नहीं ये दोनों प्रारूप एक हो सकते है ? राज्य सरकार, केंद्र के प्रारूप में बने प्रमाणपत्रों को क्यों नहीं मान्यता देती है? दो अलग अलग प्रमाणपत्र बनवाने में मेहनत व खर्च दोगुना हो जाता है।

राजस्थान राज्य में मीना अनुसूचित जनजाति समुदाय की आबादी कुल जनजाति आबादी की 50% है। राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए सांसद की 3 व विधायक की 25 सीटें आरक्षित है। इन सभी सीटों पर अनुसूचित जनजाति के लोग ही चुनाव लड़ते है । वर्तमान में इन सीटों पर जो सांसद और विधायक है वे सभी अनुसूचित जनजाति के ही है, जो चुनाव हारे वे भी इसी समुदाय के है। जनता राजनेताओ को इसलिए चुनती है कि आवश्यकता पड़ने पर वे उनके काम आये एवम आशा करती है की न केवल दिक्कतों का हल निकले अपितु वर्ग विशेष की उन्नति में मदद करे।

सरकारी प्राधिकारियों की त्रुटि से मीना समुदाय के कई व्यक्तियों को मीणा वर्तनी के साथ जनजाति प्रमाणपत्र जारी कर दिए गए, यह मसला लंबे समय से चलता आ रहा है। परन्तु सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रायलय, राजस्थान सरकार के दिनांक 30.09.2014 और 23.12.2014 के जिला कलेक्टर्स  को जारी  परिपत्रो के पश्चात् स्थिति गंभीर हो गयी और मीना  समुदाय के लोगो को अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र बनवाने में भारी दिक्कतें आनी लगी एवम जारी किये गए त्रुटिपूर्ण प्रमाणपत्रो को सही करवाना तो असंभव हो गया ।  समस्या के समाधान के लिए सामाजिक संगठनो, कांग्रेस एवम राजपा के राजनेताओ ने प्रयास किये परन्तु समाधान करवाने में सभी असफल ही रहे। बीजेपी के राजनेताओ ने भी थोडी बहुत कौशिश की पर कोई लाभ नहीं हुआ । 

यह सोचने का पहलू है कि बीजेपी जिसकी राज्य में सरकार है उसके नेताओ को तो लगता है कि इस मुद्दे से कोई लेना देना ही नहीं है। यदि समस्त प्रकरण को देखा जाये तो समाधान के प्रयासों में बीजेपी के राजनेताओ की पूर्णतया उदासीनता झलकती है । अब कोई कोर्ट की और से रोक भी नहीं है फिर भी सरकार मसले का समाधान ना करके मीना समुदाय के लोगे को परेशान होने के लिए विवस कर रही है और इस पार्टी के अनुसूचित जनजाति समुदाय के नेता आरक्षित सीटों से चुनाव तो लड़ लेते है पर उन्हें जनता के दर्द से कोई फर्क नहीं पड रहा है। सबसे ज्यादा जिम्मेदारी बीजेपी के राजनेताओ एवम इस पार्टी से जुड़े लोगों की बनाती है। जब भी ये राजनेता क्षेत्र के दौरे पर आएं इनसे पूछा जाना चाहिए कि आप इस निराधार मसले का समाधान क्यों नहीं करवा पा  रहे है?  उनसे उनके द्वारा किये गए प्रयासों के बारे में पूछा जाना चाहिए। 


इसी प्रकार विपक्ष की मुख्य भूमिका निभा रही कांग्रेस पार्टी के नेताओ से भी प्रश्न करने चाहिए की वे तथा उनकी पार्टी क्या कर रही है?  क्यों नहीं इस मुद्दे को गंभीरता से लिया जा रहा है? कांग्रेस पार्टी भी अनुसूचित जनजाति वर्ग के मीना समुदाय की परेशानियों को दूर करने में कोई ख़ास रोल अदा नहीं कर रही है। हमारे समुदाय के कांग्रेस के नेता भी प्रभावी रूप से मसले के समाधान हेतु प्रयासरत नहीं है । इस पार्टी के राजनेताओ  से पूछा जाये कि कम से कम एक अच्छे विपक्ष  के रूप में तो मीना समुदाय की मदद करे। 

राजपा के नेताओ ने बड़ी भारी रैली का आयोजन किया, अब एक साल होने जा रहा है। परन्तु लाभ कोई नहीं हुआ। और उसके बाद इस दल के नेताओ ने भी मुद्दे पर ध्यान देना छोड़ दिया । 

इन सभी पार्टियों खासकर बीजेपी के मीना समुदाय के राजनेताओ को समस्या के समाधान हेतु नींद से कौन जगायेगा ? कैसे खुलेगी इनकी नींद? क्या किया जाना चाहिए इन राजनेताओ का ताकि समाज को हो रही दिक्कते दूर हो?  या फिर इनसे उम्मीद रखना छोड़ देनी चाहिए? 

कृपया अपने अपने जानकर राजनेतओं से पूंछे कि कौनसी ऐसी परेशानी है या योजना है जिसके कारण वे चुप बैठे है? 


रघुवीर प्रसाद मीना 

No comments:

Post a Comment

Thank you for reading and commenting.