rpmwu80
06.09.2016
विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों एवं चर्चाओं के दौरान कई लोग आदिवासियों की संस्कृति को संरक्षित करने के नाम पर ऐसी बातें करते हैं जिससे कि आदिवासी समुदाय कभी उन्नति की ओर अग्रेषित नहीं हो पायेगा। उनका कहना होता है कि लोग परम्परागत खेती करते रहें, शहरों से दूर गाँवों में ही रहें, देवी देवताओं व अन्य धार्मिक परम्पराओं को ज्यों का त्यों मानते रहें, कार्यक्रमों में आदिवासी वेषभूषा में ही आया-जाया जाये, अधिक धन संग्रह करने से क्या लाभ है, संतोषी सदा सुखी, दूसरे लोग बदमाश होते हैं, उनसे मिले-जुले नहीं इत्यादि इत्यादि। अब यह देखते हैं कि क्या सलाह देने वाले व्यक्ति उनके स्वयं के बच्चों व परिवारजनों को ऐसी ही सलाह देगें? क्या ऐसे लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे व परिवारजन और लोगों से नहीं मिले-जुले, उनकी अच्छाईयाँ ग्रहण नहीं करें एवं आधुनिक जगत में उन्नति नहीं करें? हम सभी को समाज के कार्यक्रमों व मीटिंस् तथा चर्चाओं के दौरान हमेशा ऐसी सलाह देनी चाहिए जो कि हम हमारे परिवारजनों व बच्चों को देते हैं। अन्यथा यह ऐसा होगा जैसे कि कोई व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाये व हिन्दी माध्यम की वकालत करे।
500-1000 वर्ष बाद आदिवासी समुदाय देश के अन्य अग्रणी समुदायों के समकक्ष खड़ा हो, ऐसा सपना हमें देखना चाहिए। हम हर प्रकार से सक्षम बनें, उन्नति करें और प्रजातांत्रिक राज में हमारा अच्छा प्रतिनिधित्व हो। काश ऐसा हो कि आदिवासी इतने विकसित हो जाये कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए किसी सहारे की जरूरत ही नहीं पड़े।
रघुवीर प्रसाद मीना
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