rpmwu79
06.09.2016
अमूमन सामाजिक कार्यक्रमों व मीटिंस् इत्यादि के दौरान यह कहा जाता है कि कृपया कोई भी राजनीति की बात नहीं करे। आयोजक यह हिदायत उनके लम्बे अनुभव के आधार पर इस विचारधारा से देते हैं कि समाज के लोग राजनीति जैसे महत्वपूर्ण विषय पर तकपूर्ण तरीके से समझदारी दिखाते हुए बात नहीं करते हैं। जैसे ही राजनीति से सम्बंधित बातें सामने आती हैं तो विवेकपूर्ण जवाब देने के बजाय लोग एक दूसरे को गाली-गलौज करने लगते हैं अथवा ऐसे मुद्दों को सामने ले आते हैं, जिससे बात करने की बजाय कार्यक्रमों में हुड़दंग सा मच जाता है।
प्रजातंत्र में प्रत्येक व्यक्ति के वोट का समान महत्व है अतः हर व्यक्ति को उसका मत प्रकट करने का अधिकार है। प्रजातंत्र में मतदाताओं तक सही बात पहुँचाने के लिए संवाद एवं स्वस्थ बहस होती रहनी चाहिए जबकि हम राजनीति के मसलों पर बहस से दूर रहने का प्रयास करते हैं। यहाँ तक कि राजनीति जैसे महत्वपूर्ण शब्द को ही कई लोग नकारात्मक अर्थात् षडयंत्रकारी कार्रवाई से जोड़ते हुए मानते हैं। जो समाज या समुदाय स्वस्थ तरीके से राजनीतिक मसलों पर बातें नहीं कर सकते वे कभी राज करने की स्थिति तक नहीं पहुँच पायेंगे। अतः आवश्यक है कि राजनीतिक मसलों पर संसदीय भाषा में तर्कपूर्ण व स्वस्थ बहस एवं विचार प्रकट करने हेतु निःसंकोच व निडर होकर भाग लिया जाये।
एक और महत्वपूर्ण बात यह नोट की गई है कि पूर्व में जिन समाजों के लोग वोट डालने में रूचि नहीं दर्षाते थे वे अब दुकान बन्द करके व महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़कर मतदान करने जाते हैं, जबकि हमारे एवं हमारे जैसे समाज के लोगों की मतदान करने में रूचि कम होती जा रही हैं। जो लोग गाँवों से शहर में आ गये हैं वे मतदान के समय गाँव जाकर मतदान नहीं करते हैं, जिसके कारण मतदान का प्रतिशत बहुत नीचे रह जाता है एवं परिणाम विपरीत आ जाते हैं।
अतः आवश्यक है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था के राज में प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए राजनीति से सम्बंधित मसलों पर सामाजिक कार्यक्रमों व मीटिंस् में विचार व्यक्त करने देने चाहिए तथा वक्ताओं को चाहिए कि वे समझदारी व विवेकपूर्ण तरीके तथा साफ मन से उनके विचार व्यक्त करें साथ ही सभी को मतदान में अवश्य हिस्सा लेने हेतु कटिबद्ध होने की आवश्यकता है।
रघुवीर प्रसाद मीना
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