rpmwu82
07.09.2016
देखने में आता है कि कई राजनेता उनके वर्चस्व को साबित करने के लिए अनेको बार बड़ी-बड़ी रैलियाँ आयोजित करते हैं एवं जहाँ अन्य सस्ते साधनों से जाया जा सकता है तथा समय की भी कोई ज्यादा मारा मारी नहीं हो फिर भी वहाँ हेलीकॉप्टर इत्यादि से जाते हैं। ऐसे कृत्यों से अन्य समाजों के लोगो के मन में हमारे समाज के प्रति नकारात्मकता और बढती है। इन बड़ी रैलियों तथा हेलीकॉप्टर के आवागमन में वास्तव में बहुत अधिक धन खर्च होता है जिसका भार अन्ततः राजनेताओं के सपोटर्स व जनता को ही उठाना पड़ता है।
यह विचारणीय बिन्दु है कि यदि कोई राजनेता 30-35 वर्ष से सक्रिय राजनीति में हो और हर मुद्दे के लिए रैली या धरना देना पड़ रहा है तो इसका क्या तात्पर्य है? क्या यह ऐसा नहीं है कि जैसे पिता बनने के उपरांत भी व्यक्ति बेटे का कार्य कर रहा हो? साधारणतय: ऐसा लगता है कि ऐसे राजनेता सामान्य तरीकों से सरकार व प्रशासन से कार्य नहीं करवा पाते हैं और उन्हें हर बार भीड़ दिखाने की आवश्यकता पड़ती है जबकि होना यह चाहिए कि जैसे-जैसे राजनेता वरिष्ठ बनाता जाये वैसे वैसे उसकी बात का वजन इतना बढ़ जाना चाहिए कि उसका सरकार व प्रशासन के अधिकारियों व कर्मचारियों को केवल इशारा करने अथवा कहने मात्र से ही कार्य सम्पन्न हो जाने चाहिए। ऐसा नहीं होना उन राजनेताओं के व्यक्तित्व पर प्रश्नचिह्न इंगित करता है।
समाज के धन को अनावश्यक रैलीयों व हेलॉकॉप्टर्स में लगाने की वजाय सकारात्मक कार्यों जैसे बालिका छात्रावास का निर्माण, गरीब बच्चों की पढ़ाई हेतु आर्थिक सहायता तथा समाज के लोगों को रुकने के लिए शहरों में भवन बनवाने इत्यादि में लगाना ज्यादा लाभकारी होगा।
अनुरोध है कि उक्त विषय पर विवेकपूर्ण तरीके से चिन्तन करके अपने विचार व्यक्त करें।
रघुवीर प्रसाद मीना
सुप्रसिद्ध हॉलीवूड फिल्म Django Unchained अमेरिका मे अफ़्रीकी गुलामो की दुर्दशा और एक अफ़्रीकी नायक के विद्रोह की जबरदस्त कथा है। फिल्म का सबसे बड़ा खलनायक कोई गोरा नही बल्कि स्वयं एक अफ़्रीकी था जो गोरे जमींदार का खास था। वो नही चाहता था कि कोई काला अफ़्रीकी गुलाम आज़ाद हो।
ReplyDeleteवैसा ही हमारे समाज के नेता हैं। ये खुद नही चाहते कि कोई उनसे आगे निकल जाए। ये ऐसे बरगद हैं जो छाया तो दे देंगे पर पनपने नही देंगे। मीणा समाज के नेताओ मे अधिकांश तो उस फिल्म की तरह अपने से उच्च वर्ग के सत्ताधारियों और प्रभावशाली लोगो के बीच खुद को स्थापित करने मे ही उमर गुज़ार रहे हैं। और ऐसा भी नही कि सवर्ण नेता उन्हें इतनी जी हुज़ूरी के बाद भी अपने समकक्ष समझते हों। न वो समाज के हुए न बड़े नेता ही बन सके। बल्कि यूं कहें कि समाज का सोचते तो शायद बड़ा नेता बन पाते जैसे कि मायावती बनी।
अब बात करें हेलीकॉप्टर की। जब आदमी घोर असुरक्षा और हीन भावना का शिकार होता है तो स्वयं को अधिक शक्तिशाली जताने की कोशिश करता है। जैसे कि मवाली लोग SUV मे काला शीशा लगाकर खुद को शक्तिशाली साबित करने की कक्षिश करते हैं।
मनोविज्ञान के एक सिद्धांत के अनुसार अधेड़ व्यक्ति दो संभावित मनोदशाओं मे से किसी एक से गुज़रता है।
1. generativity- इसका मतलब है कि व्यक्ति अपना ज्ञान,अपना अनुभव और कौशल अपने परिवार और समाज के हित के लिए नई पीढ़ी को बांटता है और उनके सामाजिक,बौद्धिक,राजनैतिक और आध्यात्मिक विकास मे योगदान देता है। ऐसे व्यक्ति ना बुढ़ापे से डरते हैं ना मौत से। वो संतुष्ट और नम्र रहते हैं।
2.stagnation- जब व्यक्ति आत्मकेंद्रित होकर केवल अपने बारे मे सोचता है तो समय गुज़रने के साथ साथ स्वयं को अकेला,असुरक्षित और निर्बल पाता है। उसे आने वाले समय और बुढ़ापे से डर लगता है। वो वक़्त की सुइ उल्टा घुमाने की कोशिश करता है और विनाशकारी कदम उठाकर स्वयं को सिद्ध करने की कोशिश करता है।
शायद हमारे नेता ऐसे ही हो?