Sunday 5 January 2020

ठूंठ नहीं फलदार वृक्ष बने।

rpmwu295
04.01.2020

ठूंठ नहीं फलदार वृक्ष बने। 

बासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर जब लंदन से वापस आ रहे थे तो उन्होंने सोचा कि अपने देश के लिए अच्छे-अच्छे फलदार वृक्ष के बीज ले चलता हूं और बाबासाहब बहुत सारे अच्छे बीजों को भारत लेकर आए। जिन बीजों को वे भारत लेकर आए उन्हें बहुत मेहनत करके गहरा गड्ढा बनाकर, अच्छी व उपजाऊ मिट्टी और खाद डालकर वो दिया। समय समय पर सिंचित किया। उन बीजों से जो पौधे अंकुरित हुए उनकी सिचाई और परवरिश की ताकि वे जल्दी बड़े पेड़ बनकर फल देने लगे। परंतु बाबासाहब ने नोट किया जो पेड़ लंदन में बहुत अच्छे फल दे रहे थे उनमें से अधिकांश भारत में आकर फल देना तो दूर की बात दूसरों को छाया भी नहीं दे रहे हैं। बहुत मेहनत के उपरांत अधिकांश पेड़ ठूंठ बनकर रह गये। ऐसे पेड़ चाह रहे थे कि बिना पत्तों के ठूंठ रहने से उन्हें कोई पहचान नहीं पायेगा कि वे कौनसे पेड़ है? उन्हें स्वयं की पहचान छुपाना अच्छा लग रहा था। यह देखकर बाबा साहब को बहुत दुख हुआ।

उक्त बात को हम उन लोगों पर बिल्कुल सही ठहरा सकते हैं जो बाबा साहब द्वारा मुहैया कराए गए आरक्षण की वजह से अपने जीवन में ऊपर आए, उन्नति की और जो बाद में समाज के कमजोर वर्ग के हितों के लिए कोई काम नहीं आते हैं। अपनी पहचान छुपाते रहते हैं। ऐसे कई लोग चाहते है कि किसी को पता नहीं लग जाये कि वे आरक्षित वर्ग से है।

आवश्यकता है हम ठूंठ नहीं फलदार वृक्ष बने और समाज के हर कमजोर व्यक्ति की इमानदारी से मदद करें, उसको हममें सहारा नज़र आना चाहिए।

रघुवीर प्रसाद मीना

2 comments:

  1. "आरक्षण की वजह से अपने जीवन में ऊपर आए, उन्नति की और जो बाद में समाज के कमजोर वर्ग के हितों के लिए कोई काम नहीं आते हैं। अपनी पहचान छुपाते रहते हैं। ऐसे कई लोग चाहते है कि किसी को पता नहीं लग जाये कि वे आरक्षित वर्ग से है।"
    उपरोक्त कथन 100 परसेंट सही है।
    हमारे समाज मे ही हजारों ग्रुप A के अधिकारी है पर समाज की तो दूर अपने घर ,गांव, रिश्तेदारो की भी किसी तरह से मदद नही करते है। यह तक कि उनको अपने पास बिठाने में ही शर्म महसूस करते है।
    शायद वो लोग भूल गये है कि जॉब से पहले उनकी भी यही हालत थी।

    यह तो उस महान आत्मा के कर्मों का फल है जिससे आज हम सभी इस लायक बन सके कि समाज के लिये कुछ कर सकते है।

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