Wednesday 23 October 2019

ज्ञानइन्द्रियों की क्षमता की सीमा होने के कारण मनुष्य सही और गलत में अन्तर करने में गलती कर सकता है।

rpmwu274
23.10.2019

ज्ञानइन्द्रियों की क्षमता की सीमा होने के कारण मनुष्य सही और गलत में अन्तर करने में गलती कर सकता है। 

एक दिन एयरपोर्ट पर देखा कि एक हवाई जहाज पहली धीरे धीरे चला, फिर उसने उड़ान भरी और वह आसमान में ऊपर दूर चला गया। जब हवाई जहाज रोड पर चल रहा था तो अच्छी तरह से उस पर जो कुछ लिखा था वह भी दिखाई दे रहा था, जैसे जैसे हवाई जहाज दूर जाता गया वैसे-वैसे उसकी साइज छोटी होती दिखाइए देने लगी। एक स्थिति ऐसी आ गई कि वह एक बड़े पक्षी के जैसा लगने लगा, फिर लगा कि एक छोटी सी चिड़िया उड़ रही है और थोड़ी देर बाद तो वह चिड़िया भी दिखना बंद हो गई और हवाई जहाज देखते देखते आंखों से ओझल हो गया।

यही बात उन सभी चीजों के लिए भी सही है जो वास्तव में अस्तित्व है परंतु हमारी आंखों की देखने की क्षमता की सीमा होने के कारण हम उन्हें देख नहीं पाते, जैसे दिल्ली शहर है परंतु मुंबई में बैठा हुआ व्यक्ति वहां से उसे देख नहीं सकता है। इसी प्रकार अति शूक्ष्म वायरस व बैक्टीरिया ईर्दगिर्द बहुत सारे होने के बावजूद बिना माईक्रोस्पोक की सहायता से हम आंखों से नहीं देख सकते है।

ऐसे ही सुनने के लिए कानों की क्षमता पर भी निर्भर करता है। हमें आसपास की चीजें सुनाई देती है परंतु दूर की चीजें सुनाई नहीं देती। आसपास मोबाइल इत्यादि की विभिन्न प्रकार की तरंगे विधमान होने के बावजूद भी बिना उपकरणों के ना तो हम उन्हें देख पाते हैं ना ही सुन पाते हैं जबकि वे वास्तव में विधमान होती है।
इसी प्रकार हमारे मस्तिष्क की भी एक सीमा है जिसके कारण कुछ चीजों को हम समझ व सोच पाते हैं और अन्य को नहीं।

इसका मतलब यह हुआ कि हमारी ज्ञानेंद्रियों की क्षमता की सीमा होती है जिसके कारण चीजें होते हुए भी ऐसा लगता है कि वे नहीं है और व्यक्ति वास्तव में गलत निर्णय ले सकता है। अत: चीजों के बारे में अपना ओपिनियन बनाने से पूर्व बहुत भली भांति सोचने विचारने की आवश्यकता है।

रघुवीर प्रसाद मीना

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