rpmwu225
22.04.2019
एक स्कूल का प्रिंसिपल जो जर्मनी में हिटलर के नाज़ी कैम्प से किसी तरह बच निकला था उसने लिखा है कि:
"मैं हिटलर के मृत्यु दंड वाले कैम्प से बच निकला था.. और मेरी आँखों ने वहाँ जो देखा था, मैं चाहता हूँ कि उसे दुनिया मे और कोई कभी न देखे..
उन कैम्प में मौत वाले गैस चैम्बरों को क़ाबिल इंजीनियरों द्वारा बनाया गया था.. क़ाबिल और कुशल डॉक्टर बच्चों को ज़हर देते थे.. प्रशिक्षित नर्सें नवजात बच्चों को जान से मारती थीं.. औरतें और बच्चों को कॉलेज से पढ़े हुवे ग्रेजुएट और डिग्री धारक गोली से मारते थे...
इसलिए ये सब देखने के बाद अब मैं शिक्षा को लेकर बहुत दुविधा में हूँ.. और मैं आप सब से विनती करता हूँ कि अपने विद्यार्थियों और बच्चों की मदद कीजिये इंसान बनने में.. और ध्यान दीजिए कि आपकी शिक्षा कहीं उन्हें प्रबुद्ध राक्षस, कुशल मनोरोगी और क़ाबिल पागल तो नहीं बना रही है?
पढ़ना, लिखना, भाषा, इतिहास, गणित तभी तक ज़रूरी है जब तक वो हमारे विद्यार्थियों में मानव मूल्य और इंसानियत का विकास करें.. अगर ये नहीं होता है तो सारी पढ़ाई बेकार है"
उपरोक्त कथन हर जाति, धर्म, वर्ग पर लागू हो रहा है आज के दौर में... इसलिए ध्यान से देखिये जो लोग आपको नफ़रत भरे मैसेज भेजते हैं व्हाट्सएप्प पर.. वो सब पढ़े लिखे, डॉक्टर, इंजीनियर और बड़े बड़े ओहदों पर काम करने वाले लोग हैं.. आपके आसपास के लोग इस समय प्रबुद्ध राक्षस, कुशल मनोरोगी और क़ाबिल पागल बन चुके हैं.. जब भी ऐसा मैसेज आपका कोई अपना भेजे तो उसे चेताईये.. आप उन मैसेज का कोई रिप्लाई नहीं करते हैं तो भेजने वाला जगता नहीं है और जब वो जागेगा नहीं तो उसे शर्म भी नहीं आएगी.. इसलिए रिप्लाई कीजिये ऐसे मैसेज का और उन्हें बोलिये कि वो आपको अपने जैसा "मनोरोगी" न बनाएं। पढ़े लिखे लोगों को उनकी मूर्छा से बाहर खींचिए।