Sunday 4 November 2018

स्वमं पर ध्यान नहीं देकर दूसरे को सुधारने में ऊर्जा नष्ट करना हमारे देश की एक गंभीर समस्या है।

rpmwu149
04.11.2018

देश में हिंदुओं के धर्मगुरुओं व नेताओं को मुसलमानों के रीति रिवाजों जैसे तीन तलाक को ठीक करना बहुत जरूरी लग रहा है जबकि हिंदू धर्म स्वयं में जो अंधविश्वास है, दलितों के लिए छूआछूत व अपमान है एवं अन्य कई ऐसे रीति रिवाज जिनसे हिंदू धर्म शर्मसार होता है उन्हें दूर करने के लिए उनके पास समय नहीं है। इसी प्रकार जिन लोगों को आरक्षण नहीं मिला हुआ है उनको आरक्षण के अंतर्गत जो जातियां या जनजातियां उन्नति कर रही है उनकी ज्यादा चिंता है।
मैं इस बात में विश्वास रखता हूं कि व्यक्ति सोच समझकर व दृढ़ निश्चय से स्वयं को तो बदल सकता है परन्तु दूसरे को केवल उसके आचरण एवं चाल चलन से प्रभावित ही कर सकता है। दूसरे को बदलना उसके वश में है। यह बात समाज के परिपेक्ष में भी  लागू होती है। यदि कोई व्यक्ति या समाज वास्तव में सुधार हेतु बदलाव चाहता है तो उसे समय में बदलाव करना चाहिए, दूसरा व्यक्ति या समाज देखकर अच्छे गुणधर्म व आचरण को अपना लेगा।
परंतु देखा जा रहा है कि व्यक्ति स्वयं बीमार है परंतु दवाई दूसरे को देने की कोशिश करता है जब तक ऐसा होता रहेगा तो बीमार व्यक्ति स्वस्थ नहीं हो पायेगा। अतः यदि वास्तव में सुधार करना ही है तो पहले शुरुआत स्वयं से करें, दूसरे लोग स्वत: देखकर खुद ही उनमें बदलाव कर लेंगे। ऐसा करने से ही व्यक्ति स्वयं, समाज व देश की भलाई संभव है।
सुधार की हर कड़ी के लिए पहले स्वयं से शुरू करें , दूसरे अपने आप ही अच्छाई के लिए देखकर उनमें बदलाव कर लेगें।
रघुवीर प्रसाद मीना

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