rpmwu117
27.08.2017
हमारे देश में जितनी भी खराबियाँ है उनके विभिन्न कारण हो सकते हैं परंतु हिप्पोक्रेसी अर्थात दोगलापन या कहे कथनी एवं करनी में अंतर अधिकतर खराबियों का एक मुख्य कारण है।
क्या हमने सोचा है कि आखिरकार हमारे देश के नागरिकों की कथनी एवं करनी में बहुत अधिक अंतर क्यों है? मेरे मत के अनुसार इस बात का उत्तर हिंदू धर्म की मान्यताओं में छुपा हुआ है। हिंदू धर्म के अनुसार कण-कण में भगवान विराजमान है परंतु अछूत व्यक्ति मैं धर्मांध लोगों को भगवान नहीं दिखा। इसी प्रकार हम कहते हैं कि गाय हमारी माता है परंतु गाय जब रोड पर पॉलिथीन खाती है तो उसमें माता का भाव नहीं दिखता है। चुनावों के समय सभी पार्टियां अंधाधुंध पैसा खर्च करती है परंतु कैंडिडेट्स, इलेक्शन खर्चे दाखिल करते समय सरासर झूठ बताते है। यही हाल सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों व आम जनता का भी है। कहेंगे कुछ और करेंगे कुछ और।
हम यदि अपने-अपने ऑर्गनाइजेशन की कार्यशैली को देखें तो पता चलता है कि हमारे अधिकतर अधिकारी व कर्मचारी सभी मिटिंगस् के दौरान या अन्यथा बातें तो अच्छी-अच्छी करेंगे परंतु जब कार्य करना होगा तो हम वैसा ही करेंगे जिसे हम स्वमं कंडेम करते हैं। यदि कथनी और करनी में अंतर नहीं हो तो हमारे हर कार्य की गुणवत्ता बहुत श्रेष्ठ होगी और हमारा ऑर्गनाइजेशन सही दिशा में उन्नति करेगा।
यह हमारा दोगलापन है कि निरीक्षणों के दौरान या मीटिंगस् में सब कुछ अच्छा करने के लिए तैयार हो जाते हैं परंतु जब धरातल पर देखते हैं तो जिस बात को हमने कहा है उसे करते नहीं है। लिहाजा दिये गये निर्देशों की वर्षों तक भी कंप्लायंस नहीं होती है और जिससे हमारे विभिन्न क्षेत्रों और कार्य करने के तरीकों में वींछित सुधार नहीं होता है।
सरकार भी दोगलापन की शिकार है। नेता चुनाव के समय कहते कुछ हैं और बाद में करते कुछ और हैं। ऐसा होने के कारण देश में नेताओं व सरकार के प्रति जनता का विश्वास कम हो जाता है और अन्य लोग भी बड़े नेताओं के नक्शे कदम पर चल कर उसी प्रकार दोगलेपन का व्यवहार करने लग जाते हैं और उनकी कार्यशैली भी इसी से प्रभावित होती है और वे अनजाने में ही एक ऐसी कल्चर डेवलप कर देते हैं जिसमें की अच्छी गुणवत्ता का कार्य होना लगभग असंभव है।
अतः यदि हम देश की उन्नति, ब्राँड वैल्यू और अच्छी गुणवत्ता के कार्य देखना चाहते हैं तो हमें अपनी कथनी और करनी में सामंजस्य बिठाना होगा और जो कहें वह करें एवं दोगलेपन को व्यवहार से बिलकुल हटा दें।
रघुवीर प्रसाद मीना
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