rpmwu111
09.04.2017
09.04.2017
आज संयोगवश मैं श्रीधाम स्थित शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के निवास स्थान पर गया एवं देखा कि वहाँ छोटे छोटे बच्चे गैरूएँ वस्त्र धारण किये हुए धूम रहे थे। मैने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि वे वहाँ संस्कृत अध्यन करते है। मैने पुछा कि क्या यहाँ कोई भी पढ़ सकता है तो उन्होंने तुरंत उत्तर दिया कि केवल ब्राह्मण ही पढ सकते है, अन्य लोग नहीं। वे वहाँ कर्म काण्ड व पूजा पाठ से सम्बन्धित विभिन्न विधायें सीखते है। बडे़ होकर शास्त्री या आचार्य बनेंगे।
तभी मेरे मन मे विचार आये कि विभिन्न प्रकार के धार्मिक क्रियाकलापों से क्या लाभ है? क्या धर्म से गरीब की गरीबी कम हो सकती है? या उसके जीवन स्तर में कोई सुधार हो सकता है? क्या सामाजिक असमानता कम हो सकती है? क्या आज तक धर्म की मान्यता से कोई वैज्ञानिक खोज सम्भव हो पाई है?
मुझे तो लगता है अंधविश्वास, धर्म में आस्था के कारण ही है। धर्म सामाजिक भेदभाव को बढाता आया है और बढाता रहेगा।
अतः आवश्यकता है कि धार्मिक अंधविश्वास के प्रदुषण से अपने आप व जानकारों को बचाया जाये।
रघुवीर प्रसाद मीना
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