आदिवासियो_की_उन्नति_की_दिशा
विचारणीय सामाजिक कार्यकर्ता आदिवासियों व ˈमार्जिनलाइज़्ड नागरिकों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिए अथक प्रयास करते है। वे चाहते कि हाशिये पर खड़े देश के नागरिक मुख्य धारा में शामिल हो। ये उनके की प्रयास है जिसके कारण आदिवासियों व उनके समान पिछड़े अन्य नागरिकों के कल्याण के लिए कानून बनते है एवं अग्रणी नागरिकों के मन में उनके उत्थान के लिए सद्भावना विकसित होती है। अतः सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा आदिवासियों व पंक्ति के अंतिम छोर पर बैठे नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने का हर प्रयास साधुवाद से औतप्रोत समझा जाये।
दूसरी ओर हम सभी को विचार करना होगा कि डैम इत्यादि बनाकर देश की प्राकृतिक संपदा के सदुपयोग से देश की उन्नति करना भी आवश्यक है। बड़े प्रोजेक्ट्स में आदिवासियों का विस्थापन एक बड़ी चुनौती है। सरकार व आदिवासियों दोनों को ही जीत-जीत (win-win) की स्थिति बनाने का प्रयास करना चाहिए।
सरकार को चाहिए कि प्रथम तो आदिवासियों को न्यूनतम विस्थापित करे और जिनका विस्थापन अपरिहार्य है उन्हें पूरा मुआवजा बिना किसी बाधा के मिल जाये। आदिवासियों के मन में जगह विशेष से लगाव रहता है अतः उनके द्वारा किये गये छोटे मोटे प्रतिरोध को नजरअंदाज कर दिया जाये। नये विस्थापित स्थान पर आवास, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सामाजिक जीवन से जुड़ी यथासंभव बेहतर से बेहतर सुविधाएं निशुल्क मुहैया कराई जाये। आदिवासियों को भूमि व अन्य संसाधनों के अधिकार दिये जाये।
आदिवासी आदिवासियों को भी उन्नति करने व मुख्य धारा में आने के लिए स्वयं की सोच में बदलाव करने की सख्त जरूरत है। केवल जल_जंगल_जमीन की बाते करने से उन्नति नहीं होने वाली है। मेरे मतानुसार आदिवासियों को निम्नलिखित दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है -
1. आदिवासियों को चाहिए कि वे मन में अपने आप को बड़ा समझे और पहचाने कि वे जहां रह रहे है वह स्थान सदियों से उनके पुर्बजो का रहा है। वर्तमान युग में आर्थिक रूप से पिछड़ जाने से मन में किसी प्रकार की हीन भावना नहीं आने दे। आदिवासी किसी भी तरह हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था का हिस्सा नहीं रहे है। आदिवासी संस्कृति में सभी लोग समान है। कोई ऊंच नीच नहीं है। आदिवासी हमेशा खुद्दार, बहादुर, न्यायप्रिय व दूसरों के काम आने वाले लोग रहे है। आदिवासियों ने दुसरों को ज्यादा दिया है लिया बहुत कम है।
2. आदिवासियों को स्वयं जानना होगा कि आखिर वे उनकी ही जमीन पर दूसरों से पीछे कैसे रह गये? क्या कारण व कमियां रही है जिनसे वे अंतिम छोर पर पहुंच गए है? उन्नति का मतलब क्या है? सही मंजिल क्या है? कैसे आगे बढ़े? किसका साथ ले?
3. सबसे प्रथम आदिवासियों को उनकी दुर्दशा के कारणों को पहचानना होगा, जो कि निम्न प्रकार है -
3.1 आदिवासियों का साधा व संतुष्टिपूर्ण जीवन-पद्धति व दूसरों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करना।
3.2 वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दूर रहना व अंधविश्वासी होना।
3.3 नशे की लत व उसे सामाजिक मान्यता प्रदान करना।
3.4 अशिक्षा व शिक्षा की सुविधाएं नहीं होना।
3.5 स्वास्थ्य की सुविधाएं मुहैया नहीं होना।
3.6 जंगलों की भूमि के अधिकार नहीं होना।
3.7 मुख्य धारा में जाने की सोचने की बजाय वर्तमान दुखद स्थिति में संतुष्ट रहना।
3.8 घर से दूर जाने में हिचकना।
3.9 ब्याज व शोषण कर्ताओं के चुंगल में फंसना।
3.10 किसी भी राज, पार्टी, व्यक्ति के लिए जरूरत से ज्यादा निष्ठावान (loyal) होना। निष्ठा छोड़ने में देरी करना।
3.11 रहने के क्षेत्र में यातायात के संसाधनों की कमी होना।
3.12 आदिवासी राजनेताओं की ज्यादा चलती नहीं है। वे उनके समाज के लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की क्रियान्विति नहीं करवा पाते है।
3.13 पढ़े लिखे आदिवासी अधिकारी अपने परिवार तक सीमिट कर रह जाते है। दूसरों के उत्थान के लिए कम लोग ही काम करते है।
3.14 राज में हिस्सेदारी के लिए प्रयास नहीं करना।
3.15 राजनीतिक समझ में कमी। राजनीति की बातों से मुंह मोड़ना।
3.16 मुख्य रूप से पारम्परिक खेती पर निर्भर होना। बिजनेस में लगभग नगण्य हिस्सेदारी है। सामाजिक तौर पर भी प्रोत्साहन नहीं है।
3.17 विभिन्न क्षेत्रों के आदिवासियों में आपसी मेलजोल की कमी है। विचारों का आदान-प्रदान नहीं होता है।
3.18 धर्म, संस्कृति, नाचगान व इतिहास की बातों पर जरूरत से ज्यादा समय व संसाधन खर्च करना।
3.19 सरकार की जनजाति कल्याणकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं होना।
3.20 संविधान के शैड्यूल 5 व 6 के प्रावधानों का सही रूप में लागू नहीं होना।
3.21 हिल व दूर दराज के कठिन जगहों पर निवास करना।
3.22 जबरन विस्थापन व मुआवजा नहीं मिलना।
3.23 फोरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 की सही तरह से अनुपालना नहीं होना।
4. उक्त क्रमांक 3 पर सूचि बद्ध बिन्दुओं के अलावा भी कई अनेक कारण है जिनकी वजह से आदिवासी पिछड़े हुए है। अब अहम बात यह है कि समाधान क्या है? उक्त प्रत्येक बिन्दु पर आदिवासियों के युवाओं को स्वयं समझना होगा और सुधारात्मक कदम उठाने होंगे। नाज गान, पुराने रीति-रिवाजों व संस्कृति पर बने रहने से काम नहीं चलने वाला है। उन्हें उनके हित के लिए बदलना होगा। असंतुष्ट बनना होगा। किसी के लिए भी अंधी निष्ठा नहीं होनी चाहिए। तय करें कि एक दिन देश के सभी आदिवासी मुख्य धारा का हिस्सा बने।
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कृपया इस विषय पर आपके विचारों से भी अवगत कराये।
सादर
Raghuveer Prasad Meena