rpmwu244
20190712
गरीबी मिटाने के लिए आत्ममंथन
देश में 50% आदिवासी व 33% दलित न मुस्लिम गरीब है। यह विचारणीय बिन्दु है। देश के हर नागरिक व सरकारों की साझा जिम्मेदारी है कि वह इन वर्गो की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए त्वरित प्रभावी कदम उठाए।
दूसरों को दोष देने की वजाय इन वर्गो के लोगों को स्वयं को गहराई से सोचना तथा अपने विचारों, भावनाओं आदि का परीक्षण करने, आत्म-मंथन, आत्म- विश्लेषण करने की ज्यादा जरूरत है कि आखिरकार ऐसा क्यों है? मुझे तो ऐसी परिस्थिति के लिए निम्नलिखित मुद्दे काफी जिम्मेदार लगते हैं -
1.धार्मिक अंधविश्वास के प्रदूषण (DAP) को ज्यादा गले लगाना। इसके कारण सफलता के लिए स्वयं की मेहनत से अधिक देवीय शक्तियों पर अधिक विश्वास करते हैं, बचत को शिक्षा पर खर्च नहीं करके पदयात्रा, कथा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान इत्यादि पर खर्च करते हैं।
2. कमजोर आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए रोजगार हेतु घर से दूर नहीं जाना।
3. इन वर्गो के अधिकारी व कर्मचारी भी मजदूरों के कल्याण से जुड़े सरकारी पहलूओं जैसे न्यूनतम मजदूरी का भुगतान, ईपीएफ व ईएसआई की कटौती इत्यादि को इम्लेमेंट नहीं करवाते हैं।
4 परम्परागत चीजों पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से खेती को भी केवल पारम्परिक ढ़ग से ही करते है, नई तकनीक का प्रयोग नहीं करते हैं। खेती में अब लागत अधिक होने के कारण बचत नहीं हो पाती है।
5. जो लोग किसान व मजदूरों के हितों पर कुठाराघात करते हैं, उनके विरूद्ध आवाज नहीं उठाते हैं।
6.जो भी समाज अग्रणी है उनकी अच्छाईयां ग्रहण करें और स्वयं को अग्रणी बनाने की सोचे।
7. सरकार बनाने के लिए चुनाव जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था है उससे दूर रहते हैं या वोट को लालच के आधार पर किसी को भी दे देते हैं।
इन वर्गो के पढ़े लिखे व अग्रणी लोगों की और ज्यादा जिम्मेदारी है कि वे कमजोर व कम शिक्षित लोगों की अवश्य मदद करे व उन्हें सही दिशा में अग्रेसित करे।
साथ में सरकार को भी चाहिये कि देश के हर नागरिक के उत्थान हेतु माहौल बनायें व जो लोग स्वार्थवश ऐसा नहीं होने देते हैं, उनकी पहचान कर उनके प्रति कड़ा रुख अख्तियार करें।
कृपया आप भी इस विषय में अपने विचार शैयर करें।