rpmwu145
28.10.2018
मंदिरों में दान करने की बजाय गरीब व असहाय की मदद कहीं अधिक समझदारी की सोच है। छात्रावास बनाने व शिक्षा में आर्थिक सहयोग देना कहीं बेहतर है। मंदिरों में दान देने का 99% प्रतिशत मतलब यह है व्यक्ति यह दिखा रहा है कि उसने कोई गलत कार्य या पाप किया है एवं उन गलत कामों या पाप से मुक्ति हेतु मंदिर में फीस जमा करवा रहा है।
क्या मंदिर पाप से मुक्ति दिलाने के केन्द्र है? यदि ऐसा है तो क्या दान करने वाले लोग अप्रत्यक्ष रूप से समाज को यह नहीं दिखा रहे है कि मंदिर का देव (भगवान) पापियों की सहायता करता है? उन लोगों को गलत कामों या पापों से मुक्ति दिलाने वाला है। यदि ऐसा है तो यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
आवश्यकता है कि हम यह समझे कि दिये जा रहे दान से किसे लाभ होने वाला है? असली दान तो #नेकीकरदरियामेंडाल की फिलॅास्फी के अनुसरण में है। यदि धन को परोपकार हेतु दान में देना ही चाहते है तो गरीब व असहाय की मदद करें व छात्रावास बनाने एवं शिक्षा के क्षेत्र में आर्थिक सहयोग दे।
मेरे मतानुसार व्यक्ति यदि उसकी विभिन्न ड्यूटीज् को भलीभांति निष्पादित करता है तो उससे बड़ी अन्य कोई पूजा नहीं है। यदि कोई दान ही करना चाहता है तो ड्यूटी पर अतिरिक्त समय देकर समय का दान कर सकता है।
रघुवीर प्रसाद मीना
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