Sunday 14 April 2024

14 अप्रैल 2024 : भारतरत्न बाबा साहब डाॅ भीमाराम अम्बेडकर की जन्म जयंती।

  rpmwu469 Dt.14.04.2024

14 अप्रैल 2024: गंंभीर विषमताओं में उत्कृष्ट सफलताएं हासिल करने वाले, स्वयंसिद्ध कर दूसरों को शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाने वाले, भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महिलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की 133 वीं जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को ऐसे महापुरुष के जन्मदिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने हमारे देश भारत के अछूतों, गरीब, कमजोर, पिछड़ों, असहाय, महिलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये। शोषित वर्ग के उत्थान हेतु उनके द्वारा कियेे गये कार्यो की सराहना समस्त संसार में होती है। जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान जाति/समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाला, पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आता है। उन्होंने देश के महत्वपूर्ण मसलों पर अधिकांश राय लिखित में पेश की। पाकिस्तान, कश्मीर व हिन्दू धर्म की कुरूतियों पर स्पष्ट राय दी। Ministry of External Affairs (विदेश मंत्रालय has written on its web page about Dr. BR Ambedkar "Who Tried to turn the wheel of Law towards social justice for all ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने कानून के पहिये को सभी के लिए न्याय की ओर घुमाया".

जो लोग कम पढ़े लिखे है या जिनकी समझदारी में कमी है, वे समझते है कि बाबासाहब ने दलितों के लिए ही खासतौर पर काम किया जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने देश के हर नागरिक के उत्थान व कल्याण के लिए जबरदस्त उदाहरणीय काम किये थे। वैसे तो व्यक्ति की सोच (सोफ्टवेयर) उसके परवरिश (nurturing) के आधार पर बनती है परन्तु बड़े होने पर हमें तार्किक सोचने की जरूरत है और जो सही है उसकी बात करें व उसी को आगे बढ़ाया जाए। सही सोच के साथ विचार करें तो पता लगेगा कि बाबासाहब ने वास्तव में देश के हर क्षेत्र में नागरिकों के कल्याण हेतु जबरदस्त काम किया। उदाहरणार्थ - 

भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीख सकता है और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करने की आवश्यकता है  -

शिक्षा : बाबासाहब ने शिक्षा को सर्वोपरि माना। अपने सुप्रसिद्ध नारे "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो" में उन्होंने शिक्षा को प्रथम स्थान दिया। यह भी कहा कि शिक्षा शेरनी के दुध के समान है, जिसे पीकर व्यक्ति उसके अधिकारों के लिए धाड़ता है। शिक्षा से व्यक्ति सम्मान पाता है व उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। शिक्षा की सुविधाओं को महत्व देवे। ऐसी संस्थाओं से जुड़े जो गरीब व कमजोर छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करते है। 

2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे। ऊंगलियों के बीच में होकर समाधान ढूंढे ना कि परेशानी। 

3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।

4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे। देश की उन्नति में बाधक कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को सही करने लिये हिन्दू कोड बिल के प्रकरण पर उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 
 
5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।

6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। कश्मीर के मुद्दे पर उनकी राय स्पष्ट थी कि कश्मीर को विशेष राज्य का स्टेटस नहीं दिया जाये। 

7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।

8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।

9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 

10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया। धर्म परिवर्तन के समय भी देशहित का ध्यान रखा व  बदले की भावना नहीं रखी। यदि बौद्ध के अलावा किसी और धर्म को ग्रहण करते तो देश की राजनीति ही अलग हो जाती। 

11. आरक्षित वर्ग आरक्षण देश के नागरिकों के समग्र विकास (inclusive growth) का एक महत्वपूर्ण टूल है। यदि आरक्षण नहीं होता तो देश को बहुत अधिक नुकसान होता। आरक्षण नहीं होने से देश में 3 स्थिति हो सकती थी। प्रथम दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्गों का अलग देश बन जाता, द्वितीय अलग देश नहीं बन पाता तो देश में अत्याचारों के विरूद्ध दलित, आदिवासी व पिछड़ो के अधिकारियों के लिए गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी रहती अथवा तृतीय यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो एक बहुत बड़ी जनसंख्या उनकी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाती। 

आरक्षित वर्ग के लोगों के जीवन का उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें। 

12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।

13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।  

14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा 
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।

15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।

16. दूसरों को गलत करने से रोके : अस्पृश्यता को समाप्त करवा कर उन्होंने दूसरों को और अधिक पाप करने से रोका। यदि कोई गलत या अत्याचार कर रहा है तो उसे गलत करने से रोकना चाहिए। 
 
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। जरुरत है कि बाबासाहब के महान व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर हम सभी अपने अपने कार्य को सही तरीक़े से पूर्ण क्षमता व एफिसिन्सी के साथ निष्पादित करें। साथ में दूसरों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखें और यथासंभव सभी देशवासियों को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। इतिहास की ज्यादा खोजबीन करने की बजाय वर्तमान व भविष्य पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बाबासाहब के द्वारा लिखे गए दस्तावेजों व किताबों को पढ़े और उनसे प्रेरणा ले। Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence. Small minds discuss people, medium minds talk of events and great minds ponder over ideas. Implementation of the provisions of the constitution is extremely important for the welfare of the citizens, we all must individually and collectively strive for the same.

जय भीम जय हिंद 
रघुवीर प्रसाद मीना

Monday 22 January 2024

श्रीराम भगवान से प्रेरणाएं एवं सीखें

rpmwu468 dt. 22.01.2024
आज दिनांक 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में श्रीराम भगवान के भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न होने जा रहा है और देश के नागरिकों में बहुत ही उल्लास और जोश है। आशा करनी चाहिए कि वर्तमान व भावी पीढ़ियां श्रीराम भगवान की जीवन-पद्धति को थोड़ा-बहुत अपनाकर सामाजिक सौहार्द व देश के विकास में बेहतर जिम्मेदारी निभायेंगी। 

श्रीराम भगवान की जीवन लीला के बारे में रामायण जी, रामलीला, धारावाहिकों, फिल्मों, बुजूर्गो के सानिध्य व अन्य ग्रथों और दस्तावेजों से थोड़ी बहुत जानकारी तो लगभग सभी को है। उनके जीवन से ली जाने वाली प्रेरणाएं व सीखें को लिख पाना तो सम्भव नहीं है। फिर भी मोटे तौर पर हर व्यक्ति निम्नलिखित प्रेरणाएं व सीखें ग्रहण करके सामाजिक व्यवस्था को बेहतर बनाने व देश की उन्नति में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है -
1. अपने चरित्र में मानवीयता के उच्च आदर्श व सिद्धांत विकसित करें।
2. संबंधों को निभाने के लिए त्याग करने की भावना हो। आराम व स्वार्थ से ऊपर उठे। माँ बाप के आदेशों व भावनाओं और भाइयों के प्रति समर्पित रहे। दूसरों द्वारा हमारे लिए किये गये कार्यों हेतु हमेशा कृतज्ञ रहे।
3. अच्छों को संरक्षण दे तथा दुष्टों के विनाश की कार्यवाही को जनकल्याण ही समझे।
4. अपने से धन, बल, बुद्धिमता व सामाजिक व्यवस्था में कमजोर व्यक्तियों के साथ सहजता व आदर से वार्ता करे। किसी का भी सामाजिक तौर पर तिरस्कार नहीं करें। सभी को सम्मान दे। छुआछूत नहीं करें। हंसते-मुस्कुराते मानवीयता से मिले।
5. दूसरों की बातों को ध्यान और धीरज से सुनें। उनमें विश्वास कायम करे। दूसरों के विचारों और भावनाओं के प्रति सच्ची सहानुभूति रखें। दूसरे की दृष्टि से घटनाओं या वस्तुओं को देखने का प्रयास करें। अपनी त्रुटि को शीघ्र स्वीकार करें।

यदि हम भगवान श्रीराम को आदर्श मानकर जीवन जिये तो सामाजिक  व्यवस्था को अच्छी बनाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकते है।
सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना

Wednesday 3 January 2024

महान समाजसेविका माता सावित्रीबाई फुले

rpmwu468 dt. 03.01.2024
(03.01.1831 - 10.03.1897)

महिलाओं के लिए शिक्षा प्रारम्भ करवाने वाली सावित्रीबाई का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। मात्र 10 वर्ष की आयु में इनका विवाह ज्योतिराव फुले से हुआ था। 5 सितंबर 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। 

जब माता सावित्रीबाई महिलाओं की शिक्षा के लिए आगे आई तब समाज में महिलाओं को पढ़ाया नहीं जाता था। उनके अग्रणी रोल के कारण उनका बहुत विरोध हुआ, लोगों ने अपमान किया परन्तु उन्होंने बहादुरी और जज्बा दिखाया। वे महिला शिक्षा की प्रेरणा स्त्रोत है। उन्हें शत-शत नमन। 

सादर 

रघुवीर प्रसाद मीना 


जयपाल सिंह मुण्डा को जाने व याद करें और प्रेरणा ले।

rpmwu467/03.01.2024
जयपाल सिंह मुंडा 
(3 जनवरी 1903 – 20 मार्च 1970) 

जयपाल सिंह मुंडा देश के आदिवासियों और झारखंड में हुए विभिन्न आदिवासी आंदोलनों के एक सर्वोच्च नेता थे।  जयपाल सिंह मुंडा पढ़ने में बहुत इंटेलिजेंट थे, वे भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने वाले प्रथम आदिवासी थे। 1928 में हॉकी के विश्व कप जिसमें भारत विजेता हुआ, उस टीम के कप्तान थे। 

वे एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे। 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जयपाल सिंह मुंडा कंस्टीट्यूएंट असेंबली के सदस्य थे, जिन्होंने ने संविधान के निर्माण के समय आदिवासियों के हित के संबंध में जरूरी पक्ष रखें और आदिवासियों को संविधान में जो अधिकार मिले हुए है उसमें जयपाल सिंह मुंडा का बेहद बड़ा व जोरदार योगदान रहा है। 

उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हर क्षेत्र यथा पढ़ाई, खेल व राजनीति में अच्छा प्रदर्शन किया जा सकता है। अपने लोगों के हित की बातों को बहादुरी व समझदारी से कहा जा सकता है और उन्हें लाभान्वित किया जा सकता है। 

भारत देश में आज तक किसी भी आदिवासी शख्सियत को भारतरत्न से नवाजा नहीं गया है। हमें मांग करनी चाहिए कि आदिवासियों को हक दिलाने वाले महान राजनीतिज्ञ श्री जयपाल सिंह मुण्डा जी को भारतरत्न से पुरस्कृत किया जाये। 

जोहार
रघुवीर प्रसाद मीना 

Friday 21 July 2023

मकान मालिक को किरायेदार बनाकर बाहर कर दिया..... और कर रहे है.....


rpmwu466 Dt. 21.07.2023
सम्पूर्ण संसार में आदिवासियों की जनसंख्या 48 करोड़ (6.2%) के लगभग है और 2011 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 10.42 करोड़ (8.62%) तथा राजस्थान में 92.38 लाख (13.48%) थी। हमारे देश में कुल 705 जनजातीय समूह है जिनकी विभिन्न राज्यों में शून्य से लेकर 95% तक आबादी है।

आदिवासी यानि मूल निवास (Indigenous Peoples) जो किसी भूभाग पर बहुत पहले से ही रह रहे है। दूसरे लोग बाद में बाहर से आए। बाहर से आने वालों ने उनकी एकता, टेक्नोलॉजी व धोखाधड़ी के माध्यम से संसार में हर जगह जो स्थानीय आदिवासी थे उनके साथ बहुत क्रुर व बुरा व्यवहार किया। उनकी धन दौलत, जमीनें, खेती के संसाधन, खदान इत्यादि को लूट लिया और उन पर गंभीर अत्याचार किये और अत्याचार अभी भी जारी है। यही कारण है कि संसार में 6.2% आदिवासी कुल गरीब जनसंख्या का 19% है। इसी प्रकार कुपोषण के कारण आदिवासियों की लाईफ एक्पेंटेंसी अन्य नागरिकों की तुलना में 20 वर्ष कम है। आदिवासियों की स्थिति को प्रदर्शित करने के लिए निम्न संकलन का समय निकाल कर अवलोकन करें और देखें कि देश में आदिवासियों की कितनी दयनीय स्थिति है। 
हाल ही में मध्यप्रदेश में एक घटना हुई जिसमें एक आदिवासी पर पेशाब किया गया। मणिपुर की घटना के वीडियोज् ह्रदय विदारक है। ऐसा आखिर क्यों हो रहा है? और इसे रोकने में ऐसे तो देश के सभी नागरिकों की जिम्मेदारी है परंतु जो नागरिक आदिवासी समुदाय से संबंध रखते हैं उनकी जिम्मेदारी ज्यादा बनती है।

मणिपुर की घटना के संबंध में दिनांक 20 जुलाई 2023 को जवाहर सर्किल एक कैंडल मार्च का आयोजन किया गया। लगभग 100 युवाओं ने भाग लिया। आने वाले समय में हमें और जागरूक व संगठित होने की जरूरत है। देश के किसी भी कोने में यदि आदिवासियों के साथ अत्याचार हो तो हम पुरजोर तरीके से आवाज उठाएं। हमारे राजनेताओं को भी हम कहें कि उन्हें भी आदिवासियों के मुद्दों पर आवाज उठायें।

जोहार
रघुवीर प्रसाद मीना
Raghuveer Prasad Meena

Monday 24 April 2023

जीवनशैली का आत्मावलोकन

rpmwu466 Dt 24.04.2023
मष्तिष्क को सकारात्मक विचार, अध्ययन, गतिविधियों में इनगेज रखें : यदि खेत में वांछित बीज नहीं डाले जाएं तो कुदरत उसे घास-फूस व खरपतवार से भर देती है। ठीक इसी प्रकार दिमाग को यदि सकारात्मक चीजों में इनगेज नहीं करेंगे तो नकारात्मक विचार वहां उनकी जगह बना लेंगे।

2. सही सगंत महत्वपूर्ण है : जिसके पास जो होता है वह वही सांझा करता है। सुखी सुख बांटता है। दुःखी दुःख बांटता है। ज्ञानी ज्ञान बांटता है। भ्रमित भ्रम बांटता है। भयभीत भय बांटता है। अंधविश्वास में डूबा व्यक्ति अंधविश्वास बढ़ाता है। 

3. जो मिले उसे पचाना सीखो : क्योंकि भोजन न पचने पर, रोग बढ़ते है। पैसा न पचने पर, दिखावा बढ़ता है। बात न पचने पर, चुगली बढ़ती है। प्रशंसा न पचने पर, अंहकार बढ़ता है। निंदा न पचने पर, दुश्मनी बढ़ती है। राज़ न पचने पर, खतरा बढ़ता है।दुःख न पचने पर, निराशा बढ़ती है। सुख न पचने पर, पाप बढ़ता है।

समय समय पर स्वयं की जीवन शैली के सम्बन्ध में आत्मावलोकन कर सुधारात्मक कार्यवाही करते रहना चाहिए।

सादर 
रघुवीर प्रसाद मीना 

Friday 14 April 2023

14 अप्रैल 2023 : भारतरत्न बाबासाहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की जन्म जयंती।

  rpmwu465 Dt.14.04.2023

14 अप्रैल 2023: गंंभीर विषमताओं में सफलता हासिल करने वाले, शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाने वाले, भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महिलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की 132 वीं जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को ऐसे महापुरुष के जन्मदिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने हमारे देश भारत के अछूतों, गरीब, कमजोर, पिछड़ों, असहाय, महिलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये। शोषित वर्ग के उत्थान हेतु उनके द्वारा कियेे गये कार्यो की सराहना समस्त संसार में होती है। जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान जाति/समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाला, पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आता है। उन्होंने देश के महत्वपूर्ण मसलों पर अधिकांश राय लिखित में पेश की। पाकिस्तान, कश्मीर व हिन्दू धर्म की कुरूतियों पर स्पष्ट राय दी। Ministry of External Affairs has written on its web page about Dr. BR Ambedkar "Who Tried to turn the wheel of Law towards social justice for all".

जो लोग कम पढ़े लिखे है या जिनकी समझदारी में कमी है, वे समझते है कि बाबासाहब ने दलितों के लिए ही खासतौर पर काम किया जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने देश के हर नागरिक के उत्थान व कल्याण के लिए जबरदस्त उदाहरणीय काम किया था। वैसे तो व्यक्ति की सोच (सोफ्टवेयर) उसके परवरिश (nurture) के आधार पर बनती है परन्तु बड़े होने पर हमें तार्किक सोचने की जरूरत है और जो सही है उसकी बात करें व उसी को आगे बढ़ाया जाए। सही सोच के साथ विचार करें तो पता लगेगा कि बाबासाहब ने वास्तव में देश के हर क्षेत्र में नागरिकों के कल्याण हेतु जबरदस्त काम किया। उदाहरणार्थ - 

भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीख सकता है और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करने की आवश्यकता है  -

शिक्षा : से व्यक्ति बहुत सम्मान पा सकता है व आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। शिक्षा की सुविधाओं को महत्व देवे। ऐसी संस्थाओं से जुड़े जो गरीब व कमजोर छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करते है। 

2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे। ऊंगलियों के बीच में होकर समाधान ढूंढे ना कि परेशानी। 

3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।

4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे। देश की उन्नति में बाधक कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को सही करने लिये हिन्दू कोड बिल के प्रकरण पर उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 
 
5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।

6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। कश्मीर के मुद्दे पर उनकी राय स्पष्ट थी कि कश्मीर को विशेष राज्य का स्टेटस नहीं दिया जाये। 

7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।

8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।

9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए। 

10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया। धर्म परिवर्तन के समय भी देशहित का ध्यान रखा व  बदले की भावना नहीं रखी। यदि बौद्ध के अलावा किसी और धर्म को ग्रहण करते तो देश की राजनीति ही अलग हो जाती। 

11. आरक्षित वर्ग आरक्षण देश के नागरिकों के समग्र विकास (inclusive growth) का एक महत्वपूर्ण टूल है। यदि आरक्षण नहीं होता तो देश को बहुत अधिक नुकसान होता। आरक्षण नहीं होने से देश में 3 स्थिति हो सकती थी। प्रथम दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्गों का अलग देश बन जाता, द्वितीय अलग देश नहीं बन पाता तो देश में अत्याचारों के विरूद्ध दलित, आदिवासी व पिछड़ो के अधिकारियों के लिए गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी रहती अथवा तृतीय यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो एक बहुत बड़ी जनसंख्या उनकी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाती। 

आरक्षित वर्ग के लोगों के जीवन का उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें। 

12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।

13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।  

14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा 
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।

15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।

16. दूसरों को गलत करने से रोके : अस्पृश्यता को समाप्त करवा कर उन्होंने दूसरों को और अधिक पाप करने से रोका। यदि कोई गलत या अत्याचार कर रहा है तो उसे गलत करने से रोकना चाहिए। 
 
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। जरुरत है कि बाबासाहब के महान व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर हम सभी अपने अपने कार्य को सही तरीक़े से पूर्ण क्षमता व एफिसिन्सी के साथ निष्पादित करें। साथ में दूसरों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखें और यथासंभव सभी देशवासियों को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। इतिहास की ज्यादा खोजबीन करने की बजाय वर्तमान व भविष्य पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बाबासाहब के द्वारा लिखे गए दस्तावेजों व किताबों को पढ़े और उनसे प्रेरणा ले। Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence. Small minds discuss people, medium minds talk of events and great minds ponder over ideas. Implementation of the provisions of the constitution is extremely important for the welfare of the citizens, we all must individually and collectively strive for the same.

जय भीम जय हिंद 
रघुवीर प्रसाद मीना

Sunday 5 February 2023

संत शिरोमणि रविदास

rpmwu 464 Dt. 05.02.2023
संत शिरोमणि रविदास रैदास की जन्म जयंती के अवसर पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। आज के दिन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर मेमोरियल वेलफेयर सोसायटी, झालाना द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया।

संत रैदास के जीवन से ली जाने वाली महत्वपूर्ण सीखें निम्न प्रकार है - 

1. संत रैदास जी ने 15वीं सदी में सामाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए सौम्य तरीके से दौहो व वाणी के माध्यम से विनम्रता के साथ कठोर प्रहार किया।

2. वे गम्भीर मानवतावादी थे। मध्यकालीन युग में गरीब व हताश लोगों को अपनी वाणी से प्रोत्साहित कर मार्गदर्शन दिया।

3. उन्होंने वर्णभेद, जातिभेद एवं साम्प्रदायिकता का विरोध किया।

4. उन्होंने कभी भी उनकी जाति नहीं छिपाई। कर्म ही धर्म है, यह माना।

5. मनुष्य की मनुष्यका को महत्वपूर्ण माना।

6. धार्मिक कर्मकांडों की शुचिता पर अत्यधिक बल देने वालों ने इस बल के आधार पर अस्पृश्यता को फैलाया। संत रविदास ने धार्मिक कर्मकांडों का जड़ से विरोध किया।

7. वे मूर्ति पूजा, यज्ञ, पुराण कथा आदि पर ध्यान नहीं देते थे।

8. गुरु के महत्व, सत्संग, संगत, मन की स्थिति, आडम्बरों की निरर्थकता, जीव, जगत व माया को समझाने पर विशेष बल दिया।

9. मांसाहार मदिरापान व हिंसा को सिरे से खारिज किया।

10. शील, संतोष और दया पर जोर दिया।

11. मानव मानव की समानता का अलख जगाया।

12. निराशा में डूबे व्यक्तियों को गहरा संभल प्रदान किया। जीवन जीने की कला का रास्ता प्रशस्त किया।

13. विवेक, भक्ति और समाज सुधार की त्रिवेणी प्रभाहित की।

14. 15 वीं सदी में जब लोग बहुत निराश व हताश हो चुके थे तब उन्होंने समाज के कमजोर व पिछड़े वर्गो के लोगों के कल्याण के लिए जन जागृति के लिए जबरदस्त पहल की। उनका डर समाप्त करने की कोशिश की।

15. हमें संत रविदास की बोल्डनेस से सीखना चाहिए कि व्यक्ति विनम्र भाषा में भी गलत को गलत कह सकता है और निराश व हताश लोगों के लिए रास्ता प्रशस्त कर सकता है।

सादर
Raghuveer Prasad Meena