14 अप्रैल 2024: गंंभीर विषमताओं में उत्कृष्ट सफलताएं हासिल करने वाले, स्वयंसिद्ध कर दूसरों को शिक्षा के महत्व का पाठ पढ़ाने वाले, भारतीय संविधान के निर्माता, अछूूतों और गरीबों के मसीहा, महिलाओं के उत्थानकर्ता, देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने वाले, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (14 अप्रैल 1891 से 6 दिसम्बर 1956) की 133 वीं जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन करते हुए समस्त देशवासियों को ऐसे महापुरुष के जन्मदिवस के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं। बाबासाहब का जीवनकाल तो सामान्य मनुष्य की भांति 65 वर्ष का ही था परंतु उन्होंने हमारे देश भारत के अछूतों, गरीब, कमजोर, पिछड़ों, असहाय, महिलाओं और अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए 65 x 100 = 6500 वर्षों में हो सकने वाले कार्यो से भी कहीं अधिक कार्य किये। शोषित वर्ग के उत्थान हेतु उनके द्वारा कियेे गये कार्यो की सराहना समस्त संसार में होती है। जब देश आजाद हो रहा था, जब संविधान बनाया जा रहा था और उसके पश्चात आजतक भी बाबासाहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के समान जाति/समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने वाला, पढ़ालिखा व स्पष्ट सोच का धनी कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आता है। उन्होंने देश के महत्वपूर्ण मसलों पर अधिकांश राय लिखित में पेश की। पाकिस्तान, कश्मीर व हिन्दू धर्म की कुरूतियों पर स्पष्ट राय दी। Ministry of External Affairs (विदेश मंत्रालय has written on its web page about Dr. BR Ambedkar "Who Tried to turn the wheel of Law towards social justice for all ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने कानून के पहिये को सभी के लिए न्याय की ओर घुमाया".
जो लोग कम पढ़े लिखे है या जिनकी समझदारी में कमी है, वे समझते है कि बाबासाहब ने दलितों के लिए ही खासतौर पर काम किया जबकि वास्तविकता यह है कि उन्होंने देश के हर नागरिक के उत्थान व कल्याण के लिए जबरदस्त उदाहरणीय काम किये थे। वैसे तो व्यक्ति की सोच (सोफ्टवेयर) उसके परवरिश (nurturing) के आधार पर बनती है परन्तु बड़े होने पर हमें तार्किक सोचने की जरूरत है और जो सही है उसकी बात करें व उसी को आगे बढ़ाया जाए। सही सोच के साथ विचार करें तो पता लगेगा कि बाबासाहब ने वास्तव में देश के हर क्षेत्र में नागरिकों के कल्याण हेतु जबरदस्त काम किया। उदाहरणार्थ -
भारत रत्न बाबा सहाब डाॅ भीमराव अम्बेडकर के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर ऐसे महापुरुष के जीवन से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बातों की समरी बनाना तो कठिन कार्य है तदापि एक प्रयास है। प्रमुख रूप से हर व्यक्ति, बाबा साहब के जीवनशैली व महान कार्यो से निम्नलिखित महत्वपूर्ण गुण सीख सकता है और उन्हें देशहित व जनहित हेतु विकसित करने की आवश्यकता है -
1 शिक्षा : बाबासाहब ने शिक्षा को सर्वोपरि माना। अपने सुप्रसिद्ध नारे "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो" में उन्होंने शिक्षा को प्रथम स्थान दिया। यह भी कहा कि शिक्षा शेरनी के दुध के समान है, जिसे पीकर व्यक्ति उसके अधिकारों के लिए धाड़ता है। शिक्षा से व्यक्ति सम्मान पाता है व उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकता है। स्वयं शिक्षा ग्रहण करें व दूसरों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करें। शिक्षा की सुविधाओं को महत्व देवे। ऐसी संस्थाओं से जुड़े जो गरीब व कमजोर छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने में मदद करते है।
2. समाधान : विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति समर्पण से बहुत आगे बढ़ सकता है। परेशानियों के स्थान पर समाधानों पर ध्यान दे। ऊंगलियों के बीच में होकर समाधान ढूंढे ना कि परेशानी।
3. उद्देश्य के प्रति समर्पण : जीवन में बड़ा उद्देश्य तय करें एवं विपरीत परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए कठोर परिश्रम व लगन के साथ प्रमुख रूप से तय किये गए उद्देश्य पर टिके रहने की आवश्यकता है। परेशानियों के आने पर उद्देश्य से नहीं भटकना चाहिए।
4. निस्वार्थता : पढाई के पश्चात बाबा साहब जब अमेरिका से वापस भारत लौट रहे थे तब उनको पता था कि भारत में उनके साथ कैसा व्यवहार होने वाला है, बडौदा में नौकरी करते वक्त रहने का ठिकाना तक नहीं मिल पायेगा और चपरासी भी पानी नहीं पिलायेगा। फिर भी देश व समाज सेवा के लिए वे भारत आये। सामान्य व्यक्ति भारत आने की बजाय पत्नि व बच्चों को अमेरिका ले जाता एवं आराम से इज्जत की जिंदगी जीता। परन्तु बाबा सहाब ने निस्वार्थता का परिचय दिया और उन्होंने समाज सेवा हेतु आराम को त्यागकर कठिनाई भरी राह चुनी। जनहित को स्वयं हित से ऊपर समझे। देश की उन्नति में बाधक कुप्रथाओं व रीति रिवाजों को सही करने लिये हिन्दू कोड बिल के प्रकरण पर उन्होंने केन्द्र सरकार के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
5. निडरता : साईमन कमिशन के वक्त उनको देश द्रोही तक करार दे दिया गया व पूना पैक्ट से पूर्व जब गाँधी जी भूख हड़ताल पर थे तब लोगों ने उन्हें जान से मारने तक की धमकी दी थी। परन्तु वे कमजोर वर्ग के हित में उनकी माँगो पर अडिग रहे। अपने विचारों को प्रकट करने में डरे नहीं।
6. लीडरशिप : संविधान बनाते समय यदि कन्स्टिट्यूेन्ट असेम्बली में वे लीडर का रोल नहीं लेते तो जो वे चाहते थे वह संविधान में प्रविष्ट नहीं हो पाता। अत: जब भी टीम में काम करने का मौका मिले तो अग्रणी रोल में रहने की जरूरत है। कश्मीर के मुद्दे पर उनकी राय स्पष्ट थी कि कश्मीर को विशेष राज्य का स्टेटस नहीं दिया जाये।
7. स्पेशियलाईजेशन : अपने क्षेत्र में मेहनत व परिश्रम करके दक्षता हासिल करें ताकि दूसरे लोग उस क्षेत्र विशेष में आपका आदर करें।
8. पहचान नहीं छिपाई व अपने लोगों के साथ साथ कमजोर की वकालत : बाबा सहाब ने जीवन में कभी भी स्वयं की पहचान नहींं छिपाई, हमेशा कमजोर के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की। उन्होंने न केवल अछूतों बल्कि मजदूरों व महिलाओं के लिए क्रमशः निर्धारित ड्यूटी आवर्स व हिन्दू कोड बिल बनाया। पिछडो की उन्नति हेतु संविधान में आरक्षण सहित अनेक प्रावधान किये।
9. योग्यता के स्तर का काम : सामन्यतः व्यक्ति उनकी योग्यता से छोटा काम करते हैं क्योंकि वे कार्य उनको आसान लगते हैं। परन्तु सोचो यदि बाबाासाहब संविधान लिखने की वजाय उनकी जाति के लोगों की भांति सामान्य काम करने मेंं लग जाते तो क्याा होता? इस बात को ध्यान में रखते हुए पढ़े-लिखे और अनुुुभवी लोगों उनकी योग्यता व अनुभव के अनुरूप ही कार्य करने चाहिए।
10. बदले की भावना नहीं रखी: उनको जीवन में अनेको बार जाति के आधार पर घोर अपमान सहना पड़ा परन्तु उन्होनें कभी भी ऊँची जाति के लोगो को नुकसान नहीं पहुँचाया। धर्म परिवर्तन के समय भी देशहित का ध्यान रखा व बदले की भावना नहीं रखी। यदि बौद्ध के अलावा किसी और धर्म को ग्रहण करते तो देश की राजनीति ही अलग हो जाती।
11. आरक्षित वर्ग : आरक्षण देश के नागरिकों के समग्र विकास (inclusive growth) का एक महत्वपूर्ण टूल है। यदि आरक्षण नहीं होता तो देश को बहुत अधिक नुकसान होता। आरक्षण नहीं होने से देश में 3 स्थिति हो सकती थी। प्रथम दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्गों का अलग देश बन जाता, द्वितीय अलग देश नहीं बन पाता तो देश में अत्याचारों के विरूद्ध दलित, आदिवासी व पिछड़ो के अधिकारियों के लिए गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनी रहती अथवा तृतीय यदि कुछ भी नहीं हो पाता तो एक बहुत बड़ी जनसंख्या उनकी क्षमता का सदुपयोग नहीं कर पाती।
आरक्षित वर्ग के लोगों के जीवन का उत्थान हेतु आरक्षण का प्रावधान बाबासाहब की परिकल्पना से ही संभव हो पाया। अतः आरक्षित वर्ग के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी बनती है कि वह कड़ी मेहनत के साथ सम्पूर्ण निष्ठा व लगन से कार्य करे। व्यक्ति को उसके कार्य क्षेत्र में महारत हासिल करनी चाहिए , नई नई स्किल सीखनी चाहिए। कभी भी स्वयं की कमियों व इनएफ़्फीसिएन्सी को छुपाने के लिए बाबासाहब का नाम कारपेट की भाँति उपयोग में नहीं लें।
12. भेदभाव नहीं करें : जाति व धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करें। दूसरे व्यक्ति के बैकगॉउन्ड को समझे, व्यक्ति के मस्तिष्क का सॉफ्टवेयर उसके पालनपोषण पर निर्भर करता है।
13. विषमता के समय बाबासाहब को याद करें : जब भी ख़राब परिस्थिति हो तो बाबासाहब व उनके जीवन की कठिनाईओं और उनके संघर्ष को याद करेें, समाधान अवश्य मिल जायेगा।
14. बाबासाहब का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नारा :
शिक्षित बने, संगठित रहे और संघर्ष करें को याद रखे व इसका जीवन में अनुसरण करें।
15. माँ जैसा रोल : जनहित के प्रमुख उद्देश्यों के लिए दाई की बजाय माँ की भांति काम करें।
16. दूसरों को गलत करने से रोके : अस्पृश्यता को समाप्त करवा कर उन्होंने दूसरों को और अधिक पाप करने से रोका। यदि कोई गलत या अत्याचार कर रहा है तो उसे गलत करने से रोकना चाहिए।
ये तो कुछ ही पहलू है उनके व्यक्तित्व को समराईज करना आसान नहीं है। जरुरत है कि बाबासाहब के महान व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर हम सभी अपने अपने कार्य को सही तरीक़े से पूर्ण क्षमता व एफिसिन्सी के साथ निष्पादित करें। साथ में दूसरों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखें और यथासंभव सभी देशवासियों को प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें। इतिहास की ज्यादा खोजबीन करने की बजाय वर्तमान व भविष्य पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। बाबासाहब के द्वारा लिखे गए दस्तावेजों व किताबों को पढ़े और उनसे प्रेरणा ले। Cultivation of mind should be the ultimate aim of human existence. Small minds discuss people, medium minds talk of events and great minds ponder over ideas. Implementation of the provisions of the constitution is extremely important for the welfare of the citizens, we all must individually and collectively strive for the same.
जय भीम जय हिंद
रघुवीर प्रसाद मीना